Go to Top

गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों का बलिदान: 20 से 28 दिसंबर का इतिहास”

20 दिसंबर से 28 दिसंबर का सप्ताह सिख इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दौरान, **गुरु गोबिंद सिंह जी** और उनके परिवार ने धर्म और सच्चाई की रक्षा के लिए जो बलिदान दिए, वे आज भी हर सिख के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इसे **शहीदी सप्ताह** (Shaheedi Saptah) के रूप में जाना जाता है। इस सप्ताह में गुरु जी के चार साहिबजादों (**चौथे साहिबजादे**) और उनकी मां, **माता गुजरी जी**, ने वीरता और धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित किया।

### घटनाओं का क्रम:

#### **20 दिसंबर, 1704**:
– **आनंदपुर साहिब** का किला महीनों से मुगलों और उनके सहयोगियों से घिरा हुआ था। लगातार बढ़ते दबाव और कठिनाइयों के कारण, गुरु गोबिंद सिंह जी को किला छोड़ना पड़ा।
– किला छोड़ते समय, उनके परिवार और अनुयायियों पर **सरसा नदी** के पास हमला हुआ। इस हमले में उनका परिवार बिछड़ गया। गुरु जी के दो बड़े पुत्र (**बाबा अजीत सिंह जी** और **बाबा जुझार सिंह जी**) उनके साथ थे, जबकि दो छोटे साहिबजादे (**बाबा ज़ोरावर सिंह जी** और **बाबा फतेह सिंह जी**) अपनी दादी माता गुजरी जी के साथ अलग हो गए।

#### **21-22 दिसंबर, 1704 (चमकौर का युद्ध)**:
– गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह जी (18 वर्ष) और बाबा जुझार सिंह जी (14 वर्ष) ने कुछ सिख साथियों के साथ **चमकौर साहिब** के एक छोटे किले में शरण ली।
– यहां **चमकौर का युद्ध** हुआ। गुरु जी और उनके 40 बहादुर सिखों ने मुगलों की विशाल सेना का डटकर सामना किया।
– इस युद्ध में बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी ने वीरता से लड़ते हुए **शहादत** दी।

#### **24-25 दिसंबर, 1704 (फतेहगढ़ साहिब)**:
– छोटे साहिबजादे बाबा ज़ोरावर सिंह जी (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह जी (6 वर्ष) को माता गुजरी जी के साथ मुगलों ने पकड़ लिया और उन्हें सरहिंद के नवाब **वज़ीर खान** के सामने पेश किया।
– नवाब ने छोटे साहिबजादों को इस्लाम धर्म अपनाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने इसे दृढ़ता से ठुकरा दिया।

#### **26 दिसंबर, 1704 (छोटे साहिबजादों की शहादत)**:
– वज़ीर खान ने छोटे साहिबजादों को जिंदा **दीवार में चुनवा दिया**।
– इस घटना ने सिख इतिहास में बलिदान और धर्म की रक्षा के लिए अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया।
– इस क्रूरता को सहते हुए, माता गुजरी जी ने भी ठंडे बुर्ज (ठंडे मीनार) में अपनी अंतिम सांस ली।

#### **27-28 दिसंबर, 1704**:
– चमकौर का किला छोड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी **मच्छीवाड़ा के जंगलों** में चले गए।
– इन कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने धैर्य और दृढ़ता बनाए रखी और अपने अनुयायियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा दी।

### सिख धर्म में महत्व:
यह सप्ताह सिख इतिहास में साहस, बलिदान और धर्म की रक्षा के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है। हर साल, इस समय को **शहीदी जोर मेले** और गुरुद्वारों में कीर्तन, अरदास और साहिबजादों की गाथाओं के पाठ से मनाया जाता है।

 

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *