पपीता
पपीता अत्यंत पाचक, पेट का कब्ज दूर करने वाला, मल त्याग की क्रिया को सरलता प्रदान करने वाला मीठा और स्वादिष्ट फल है। यह गूदेदार, अंदर से खोखला होता है, जिसमें छोटे–छोटे सैकड़ों काले बीज होते हैं। फल के ऊपर पतला सा छिलका होता है, जो पहले हरा और पकते–पकते पीले से हल्के नांरगी रंग में बदल जाता है। इसका गूदा पीला नांरगी रंग लिए हुए और मुलायम होता है। इसकी मूल उत्पत्ति दक्षिणी मेक्सिको ब्राजील देश में मानी जाती है। लेकिन आज के युग में यह लगभग सभी उष्ण कटिबंध वाले देशों में पाया जाता है। पपीता अपने प्रोटीन से दो सौ गुना अधिक प्रोटिन को पचा सकता है। इसमें पपेन नामक एंजाइम होता है, जो आंतों के विकारों को दूर करने में अत्यंत उपयोगी होता है। इसमें विटामिन ए, खनिज, विटामिन ÷सी‘ काफी मात्रा में पाये जाते हैं तथा चीनी और कार्बोहाइड्रेट्स भी काफी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। पपीते को प्राचीन काल से ही हमारे वैद्य, ऋषि–मुनियों ने रोगियों के लिए अत्यंत उपयोगी बताया है। यह ऊर्जा प्रदान करने वाला फल अपने औषधीय गुणों से कई रोगों में लाभकारी है, जैसेः आंतों के रोग (अपेंडिक्स) : पपीते का दूध धूप में सुखा कर चूर्ण बनाएं और आंतों के रोगों के उपचार के लिए इस चूर्ण का सेवन करें। इससे अपेंडिसाइटिस नहीं होगा। पेट के कीड़े : पपीते में विद्यमान पपेन एंजाइम पेट की कृमियों को दूर करने में सहायक होता है। इसका एक चम्मच रस, एक चम्मच शहद में मिला कर, गरम पानी के साथ लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। प्लीहा वृद्धि : पपीते के छोटे–छोटे टुकड़े काट कर सिरके में एक सप्ताह डुबो कर रखें। इसे भोजन के उपरांत खाने से प्लीहा वृद्धि का रोग ठीक हो जाता है।
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