Ganesh-Worship
किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले हिंदू धर्मावलंबी सर्वप्रथम गणेशजी का स्मरण, वंदन तथा स्तुति करते हैं। शंकर और पार्वती के पुत्र गणेशजी को आदि देव माना गया है। जिस तरह प्रणवाक्षर (ऊँ) के बिना वेदमंत्र प्रभावहीन हो जाते हैं, उसी तरह कोई भी शुभ कर्मकांड इनके पूजन के बिना पूरा नहीं माना जाता है। गणेश के विभिन्न स्वरूप भगवान गणेश ज्ञान के देव और विघ्नों को हरने वाले हैं। विनायक भी हैं वह तो विनय के स्वामी भी। वे क्षिप्रा भी हैं यानी आसानी से उपलब्ध और मनाए जा सकने वाले। महाबलशाली और महामृत्युंजय गणपति के अनेक नाम हैं और अनेक रूप। साधक या भक्त जिस रूप में चाहे उन्हें मन में रख सकता है। उन्हें मन में धारण कर स्मरण करने से ही कई विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। गणेश को इसीलिए सभी गणों का ईश्वर कहा गया है। वेदों में भी अग्रणी हैं गणॆश: कामेश्वर उपाध्याय भगवान गणॆश की उत्पत्ति परम तत्व मानसी उपस्थिति है। वेदों में उन्हें महानायक के रूप में अग्रणी माना गया है। तंत्रों में गणॆश की उपस्थिति आदिम देवता के रूप में है। चतुर्थी तिथि के देवता के रूप में गणॆश ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र में पूजित हैं। इसलिए हरएक महीने के चतुर्थी तिथि के दिन गणपति एवं चंद्रमा की पूजा होती है।
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