अनार द्वारा रोग निवारण गुर्दे और मूत्राशय की पथरी
अनार के रस में मिस्री मिला कर पीने से हृदय रोग में आराम मिलता है और छाती का दर्द भी जाता रहता है। हिस्टीरिया, पागलपन और मिरगी के दौरे : अनार के पत्ते और गुलाब के फूल को बराबर मात्रा में लें और पानी में उबालें। जब एक चौथाई पानी रह जाए, तो छान लें। इसमें दो चम्मच देशी घी मिला कर पीने से रोग ठीक होता है। पाचन तंत्र विकार : अनार के सेवन से पाचन तंत्र सुचारु रूप से काम करता है, शक्ति बढ़ती है, भूख लगती है और आंतें साफ होती हैं एवं पित्त प्रकोप का नाश होता है। आंतों के कीडे+ : अनार की छाल और पलाश बीज का चूर्ण तथा वायविडंग पानी में उबालें। पानी जब आधा रह जाए, तो छान कर पीएं। इससे आंतें साफ होती हैं और कीडे+ बाहर निकल जाते हैं। पेचिश एवं दस्त : ऐसे रोगो में अनार विशेष औषधि का काम करता है। दिन में ५० मिली लीटर अनार का रस चार बार पीने से पेचिश–दस्त में आराम मिलता है और शरीर में पानी की कमी दूर होती है। वमन : अनार के रस में शहद मिला कर चाटने से उल्टी में आराम मिलता है और जी भी नहीं मिचलाता। कोढ़ के घाव, दाद, खारिश : अनार के पत्ते पीस कर लगाने से कोढ़ के घाव, दाद, खारिश इत्यादि में फायदा होता है।
पपीता
पपीता अत्यंत पाचक, पेट का कब्ज दूर करने वाला, मल त्याग की क्रिया को सरलता प्रदान करने वाला मीठा और स्वादिष्ट फल है। यह गूदेदार, अंदर से खोखला होता है, जिसमें छोटे–छोटे सैकड़ों काले बीज होते हैं। फल के ऊपर पतला सा छिलका होता है, जो पहले हरा और पकते–पकते पीले से हल्के नांरगी रंग में बदल जाता है। इसका गूदा पीला नांरगी रंग लिए हुए और मुलायम होता है। इसकी मूल उत्पत्ति दक्षिणी मेक्सिको ब्राजील देश में मानी जाती है। लेकिन आज के युग में यह लगभग सभी उष्ण कटिबंध वाले देशों में पाया जाता है। पपीता अपने प्रोटीन से दो सौ गुना अधिक प्रोटिन को पचा सकता है। इसमें पपेन नामक एंजाइम होता है, जो आंतों के विकारों को दूर करने में अत्यंत उपयोगी होता है। इसमें विटामिन ए, खनिज, विटामिन ÷सी‘ काफी मात्रा में पाये जाते हैं तथा चीनी और कार्बोहाइड्रेट्स भी काफी मात्रा में उपलब्ध होते हैं। पपीते को प्राचीन काल से ही हमारे वैद्य, ऋषि–मुनियों ने रोगियों के लिए अत्यंत उपयोगी बताया है। यह ऊर्जा प्रदान करने वाला फल अपने औषधीय गुणों से कई रोगों में लाभकारी है, जैसेः आंतों के रोग (अपेंडिक्स) : पपीते का दूध धूप में सुखा कर चूर्ण बनाएं और आंतों के रोगों के उपचार के लिए इस चूर्ण का सेवन करें। इससे अपेंडिसाइटिस नहीं होगा। पेट के कीड़े : पपीते में विद्यमान पपेन एंजाइम पेट की कृमियों को दूर करने में सहायक होता है। इसका एक चम्मच रस, एक चम्मच शहद में मिला कर, गरम पानी के साथ लेने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। प्लीहा वृद्धि : पपीते के छोटे–छोटे टुकड़े काट कर सिरके में एक सप्ताह डुबो कर रखें। इसे भोजन के उपरांत खाने से प्लीहा वृद्धि का रोग ठीक हो जाता है।
लौंग : औषधियुक्त मसाला
लौंग एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण औषधि है। इसका उपयोग खाने के मसालों में भी किया जाता है। लौंग के पेड़ बहुत लुभावने होते हैं, जो भीनी–भीनी सुगंध छोड़ते रहते हैं। पेड़ पर लगे फूलों की फलियां ही लौंग होती है, जो गुणकारी घरेलू औषधि के साथ–साथ अत्यंत लाभकारी भी है। लौंग पाचक, कफ–पित्त नाशक होती है। भोजन में इसका उपयोग पाचन शक्ति को बढ़ाता है और खाने में रुचि लाता है, भूख भी बढ़ाता है। अन्य भी कई रोगों में इसका उपयोग लाभकारी है। दंत रोग पायरिया : लौंग को पीस कर दांतों में लगाने से रोग दूर होता है। इसी लिए इसका उपयोग कई दंत मंजनों में किया जाता है। दांतों का हिलना, दांत दर्द, मसूड़ों का कमजोर होना, इन सभी में लौंग एक विशेष औषधि है। खांसी : सूखी या कफ वाली खांसी में लौंग को गर्म कर के, मुंह में रख कर चूसने से खांसी शांत होती है और गला भी साफ रहता है। मलेरिया : लौंग और चिरौता को पानी में देर तक पकाएं। जब पानी एक चौथाई रह जाए, तो इस प्रकार बने काढ़े को मलेरिया के रोगी को पिलाएं, तो फौरन आराम मिलता है। पेट का अफरा : जिन लोगों को भोजन के उपरांत अफरा होता है, वे भोजन के बाद लौंग मुंह में रख कर चूसें, या भोजन में लौंग का उपयोग करें, तो अफरा दूर होगा। श्वास रोग : प्रतिदिन सोते समय लौंग को भून कर खाने से श्वास रोग, दमा आदि दूर होते हैं। इससे बलगम खत्म हो जाता है, श्वास की शिकायत मिटती है, नजला–जुकाम भी दूर रहता है। मूत्र विकार : लौंग रक्त के श्वेत कणों को बढ़ाता है। श्वेत कण ही विभिन्न रोगों के जीवाणुओं को नष्ट करते हैं। इसलिए इसके सेवन से मूत्र संबंधी विकार दूर होते हैं।
रोगों में फायदेमंद इमली
चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसलिए इसे विभिन्न स्थानों पर विशेष तौर से भोजन में सम्मिलित किया जाता है। दक्षिण भारत में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए आंध्रवासी भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर 400 वर्ष पूर्व जब पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया तब वे अपने साथ टमाटर भी लाए, अतः धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा। तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार हाल ही में आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं। कच्ची इमली बच्चों को बड़ी प्रिय होती है। हालाँकि आधुनिक बच्चों का प्रकृति से संपर्क लगभग खत्म ही हो गया है। बड़े होने पर चूँकि दाँतों पर से इनेमल निकल जाता है अतः हम इमली नहीं खा पाते हैं। तब भी इमली के उपयोग के अनेक तरीके हैं। गर्मियों में ताजगीदायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शकर, नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें डले ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं। गर्मियों में इसके नियमित सेवन से लू की संभावना खत्म होती है। यह पेय हल्के विरेचक का कार्य भी करता है। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है। पकी इमली अपच को दूर कर मुँह का स्वाद ठीक करती है। यह क्षुधावर्धक भी है। इमली पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोगी है। इसके अलावा इसे हृदय का टॉनिक भी माना जाता है। पित्त समस्याओं के लिए रोजाना रात को एक बेर के बराबर मात्रा इमली कुल्हड़ में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। थोड़ा मीठा डालकर खाली पेट पी जाएँ। छः-सात दिन में लाभ नजर आने लगेगा। इसके अलावा इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इसके फूलों से भूख बढ़ने के अलावा व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ता है। आयुर्वेद में इमली के बीजों के भी औषधीय उपयोग हैं। इसके बीजों का पावडर पानी में घोलकर बिच्छू के काटे पर लगाया जाता है। इमली के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह छील लें व पीठ दर्द के लिए खूब चबाकर खा लें। इमली ऊतकों में जमा यूरिक अम्ल निष्कासित करती है, जिससे जोड़ों के दर्द व रह्यूमेटिज्म में आराम मिलता है। समाज में यह भ्रांति है कि इस तरह के रोगियों को इमली से पूर्ण परहेज करना चाहिए, क्योंकि इमली से जोड़ों में जकड़न बढ़ती है। तथ्य यह है कि जोड़ों से यूरिक अम्ल निष्कासन के दौरान दर्द बढ़ जाता है, जिसका जिम्मेदार इमली को मान लिया जाता है। इमली के निरंतर सेवन से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। आजकल 30 वर्ष की उम्र में ही लोग खासकर महिलाएँ इस रोग से पीड़ित हो रही हैं, अतः इमली के निरंतर प्रयोग से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। तो हुई न इमली फायदेमंद!
कड़वे करेले के बड़े–बड़े गुण
करेले का नाम सुनते ही जीभ में कड़वाहट-सी घुल जाती है, परंतु इसके कड़वेपन पर न जाएँ, औषधीय गुणों की दृष्टि से यह किसी भी अन्य सब्जी या फल से कम नहीं। करेला ग्रीष्म ऋतु की खुश्क तासीर वाली सब्जी है। इसमें फॉस्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह कफ की शिकायत दूर करता है। इसके करेला ग्रीष्म ऋतु की खुश्क तासीर वाली सब्जी है। इसमें फॉस्फोरस पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह कफ की शिकायत दूर करता है सेवन से कब्ज ठीक हो जाती है। भोजन सुगमता से पचता है और भूख खुलकर लगती है। दमा होने पर बिना मसाले की छौंकी हुई करेले की सब्जी खाने से फायदा होता है। पेट में गैस बनने या अपच होने पर करेले के रस का सेवन करना चाहिए। लकवे के मरीज को कच्चा करेला बहुत फायदा करता है। उल्टी-दस्त या हैजा होने पर करेले के रस में थोड़ा पानी और काला नमक मिलाकर सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है। यकृत संबंधी बीमारियों के लिए तो करेला रामबाण औषधि है। जलोदर रोग होने या यकृत बढ़ जाने पर आधा कप पानी में 2 बड़ी चम्मच करेले का रस मिलाकर ठीक होने तक रोजाना तीन-चार बार सेवन करने से लाभ होता है। पीलिया रोग में पानी में करेला पीसकर खाना चाहिए। करेला रक्तशोधक सब्जी है। मधुमेह के रोगी को एक चौथाई कप करेले के रस में समान मात्रा में गाजर का रस मिलाकर पिलाना चाहिए। खूनी बवासीर होने पर 1 चम्मच करेले के रस में आधा चम्मच शकर मिलाकर एक माह तक सेवन करने से खून आना बंद हो जाता है। गठिया या हाथ-पैर में जलन होने पर करेले के रस की मालिश करना चाहिए।
ठंढक भरा पुदीना
यूँ तो कई पौधे ऐसे हैं जिनकी पत्तियाँ मानव शरीर के लिए औषधि के रूप में बहुउपयोगी हैं। पुदीना सर्वसुलभ, कम जगह में बिना जड़ के ही आसानी से लगने वाला व सुगंध में मन को मोहने वाला होता है। वैसे तो बारह महीने ही यह किसी न किसी रूप में उपयोगी है किंतु इसके शीतलता के गुण की वजह से ग्रीष्म ऋतु में यह अत्यधिक लाभप्रद है। इन दिनों अक्सर खाने-पीने में थोड़ी-सी गड़बड़ हुई नहीं कि अजीर्ण की शिकायत हो जाती है। ऐसे में पुदीने के रस में काला नमक मिलाकर चाट लेने पर तुरंत असर करता है। अधिक गर्मी बहुत बार उल्टी-दस्त का कारण बन जाती है, जिससे रोगी कुछ ही देर में परेशान हो जाता है। ऐसे रोगी को पुदीने का शरबत बनाकर पिलाएँ। पुदीना चटनी की तरह पीसकर मिश्री या शकर के पानी में मिक्स करके छान लें। शीघ्र ही ताजा शरबत बन जाएगा। दही में पुदीना मिलाकर खिलाने से भी रोगी को रोग से शीघ्र राहत मिलती है। लू इन दिनों की गंभीर समस्या है। इससे बचाव के लिए पुदीने की पत्तियाँ व जीरे को 4-5 घंटे भिगो दें। फिर इसे महीन पीस लें। इसमें नमक व हल्की सी चीनी मिलाकर पेय बनाएँ और दिन में दो बार पिएँ। आप लू से बचे रहेंगे। गर्मियों में जलन होना, पेशाब रुक-रुककर आना या कम होना जैसे रोगों में भी पुदीना रामबाण औषधि है। पुदीने की पत्तियाँ धोकर मिश्री और थोड़ा सा सूखा धनिया मिलाकर पीस लें। इस पेस्ट को पानी में घोल-छानकर दिन में 2-3 बार पीना फायदेमंद होता है। पुदीना, काली मिर्च, हींग, सेंधा नमक, मुनक्का, जीरा, छुहारा सबको मिलाकर चटनी पीस लें। यह चटनी पेट के कई रोगों से बचाव करती है व खाने में भी स्वादिष्ट होती है। भूख न लगने या खाने से अरुचि होने पर भी यह चटनी भूख को खोलती है। खाँसी होने पर पुदीने व अदरक का रस थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से खाँसी ठीक हो जाती है। यदि लगातार हिचकी चल रही हो तो पुदीने में चीनी मिलाकर धीरे-धीरे चबाएँ। कुछ ही देर में आप हिचकी से निजात पा लेंगे। यदि आपको टांसिल की शिकायत रहती है, जिनमें अक्सर सूजन हो जाती हो तो ऐसे में पुदीने के रस में सादा पानी मिलाकर गरारा करना चाहिए। दिनभर बाहर रहने वाले लोगों को तलुओं में जलन की शिकायत रहती है, ऐसे में उन्हें फ्रिज में रखे हुए पिसे पुदने को तुलओं पर लगाना चाहिए, राहत मिलती है। सूखा या गीला पुदीना छाछ, दही, कच्चे आम के पने में पिया जाए तो पेट में होने वाली जलन दूर होकर ठंडक मिलती है। लू से भी बचाव होता है। जहरीले कीट के काटने पर उस जगह पिसा पुदीना लगाना शीघ्र लाभ पहुँचाता है। पुदीने की पत्तियाँ धीरे-धीरे चबाने से भी रोगी को राहत मिलती है। चेहरे पर हुए मुँहासे व चेचक के दाग-धब्बों में महँगी क्रीमों की अपेक्षा यह शीघ्र असर करता है। इसकी पत्तियों को पीसकर इसमें थोड़ा सा गुलाब जल व नीबू का रस मिला लें। चेहरा धोकर सोते समय इस लोशन को लगा लें। सूखने पर धोएँ नहीं। सुबह ताजे ठंडे पानी के छींटे मारते हुए चेहरा साफ करें। दो-तीन सप्ताह की नियमितता रंग लाएगी।